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चालीस का रंग by Sandhya Rathi Laddha

चालीस का रंग अब मुझ पर चढने लगा है।

मेरा मन अब बेखौफ होकर उड़ने लगा है।

क्या कहेंगे लोग? अब नहीं रहा ये रोग

उसकी Vaccine लगवा कर आगे बढ़ने लगा है।

क्या पहनूं, कहां जाऊं, किससे मिलूं, क्या बात करूं?

अब इसका कोई डर नहीं

खुद पर विश्वास अब बढने लगा है।

बालों को Color कर के इठलाती हूं।

किटी पार्टी में भी जम के धूम मचाती हूं।

सहेलियों का साथ अब खूब जमने लगा है।

चालीस का रंग अब मुझ पर चढ़ने लगा है।

जिम्मेदारियों का लिबास ओढ़ कर भी अपने शौक पूरे करती हूं।

मेरे सपनों में भी रंग अब भरने लगा है।

घर का काम और बच्चों की फरमाइश आज़ भी पूरी करती हूं।

मगर अब ये मन मेरी इच्छाओं का भी मन रखने लगा है।

चालीस का रंग अब मुझ पर चढ़ने लगा है।

पूजा पाठ, संस्कार, पहनावा, रीत रिवाज आज़ भी मन से निभाती हूं।

मगर अब ये दिल डिस्को पर भी थिरकने लगा है।

अब मेरी प्लेट में भी मेरी पसंद का भोजन परसने लगा है।

टीवी पर चैनल भी मेरी पसंद का लगने लगा है।

चालीस का रंग अब मुझ पर चढ़ने लगा है।

किसने कितना माना और कितना समझा, इसकी मुझे कोई परवाह नहीं।

हर बार परीक्षा दे-देकर अब ये मन थकने लगा है।

नहीं उतरना किसी भी कसौटी पर खरा, चाहे मत दो मुझे अंक भी ज़रा।

क्योंकि अब प्रश्न पत्र भी मेरा होगा, और उत्तर भी मैं ही दूंगी।

अब ये मन‌ मेरा आकलन भी खुद करने लगा है।

चालीस का रंग अब मुझ पर चढ़ने लगा है।

मेरा मन बेखौफ होकर अब उड़ने लगा है।

 
 
 

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